Wednesday 2 November 2011

जैसे सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को Jaise suraj ki garmi se jalte hue tan ko

जैसे सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को मिल जाए तरुवर की छाया
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला हैं मैं जब से शरण तेरी आया, मेरे राम

भटका हुआ मेरा मन था, कोई मिल ना रहा था सहारा
लहरों से लडती हुयी नाव को जैसे मिल ना रहा हो किनारा
उस लडखडाती हुयी नाव को जो किसी ने किनारा दिखाया

शीतल बने आग चन्दन के जैसी, राघव कृपा हो जो तेरी
उजियाली पूनम की हो जाए रातें, जो थी अमावस अंधेरी
युग युग से प्यासी मरुभूमी में जैसे सावन का संदेस पाया

जिस राह की मंझील तेरा मिलन हो, उस पर कदम मैं बढ़ाऊ
फूलों में खारों में, पतझड बहारों में, मैं ना कभी डगमगाऊ
पानी के प्यासे को तकदीर ने जैसे जी भर के अमृत पिलाया

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