मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा हैं सावन के कुछ भीगे दिन रखे हैं और मेरे एक ख़त में लिपटी रात पडी हैं वो रात बुझा दो, मेरा सामान लौटा दो पतझड़ हैं कुछ, हैं ना ... पतझड़ में कुछ पत्तों के गिराने की आहट कानों में एक बार पहन के लौटाई थी पतझड़ की वो शांख अभी तक काँप रही हैं वो शांख गिरा दो, मेरा वो सामान लौटा दो एक अकेले छतरी में जब आधे आधे भीग रहे थे आधे सूखे आधे गिले, सुखा तो मैं ले आयी थी गिला मन शायद, बिस्तर के पास पडा हो वो भिजवा दो, मेरा वो सामान लौटा दो एक सौ सोलह चाँद की रातें, एक तुम्हारे काँधे का तील गीली मेहंदी की खुशबू, झूठमूठ के शिकवे कुछ झूठमूठ के वादे भी, सब याद करा दो सब भिजवा दो, मेरा वो सामन लौटा दो एक इजाजत दे दो बस जब इस को दफ़नाउन्गी मैं भी वही सो जाऊँगी
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Friday 4 November 2011
मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा हैं
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