Friday 4 November 2011

हुजूर इस कदर भी ना इतराके चलिए (Huzur Is Kadar Bhi....)

हुजूर इस कदर भी ना इतराके चलिए
खुले आम आँचल ना लहरा के चलिए

कोई मनचला अगर पकड़ लेगा आँचल
ज़रा सोचिये आप क्या किजीयेगा
लगा दे अगर, बढ़ के जुल्फों में कलियाँ
तो क्या अपनी जुल्फे झटक दिजीयेगा

बड़ी दिलनशी हैं हँसी की ये लडीयाँ
ये मोती मगर यूँ ना बिखराया कीजे
उड़ा के ना ले जाए जोंका हवा का
लचकता बदन यूँ ना लहराया कीजे

बहोत खूबसूरत हैं, हर बात लेकिन
अगर दिल भी होता, तो क्या बात होती
लिखी जाती फिर दास्ताँ-ए-मोहब्बत
एक अफसाने जैसी मुलाक़ात होती

1 comment: