सेवा है यज्ञ कुंड समिधा सम हम जले
ध्येय महासागर में सरित रूप हम मिले
लोकयोगक्षेम ही राष्ट्र अभय गान है
सेवारत व्यक्ति व्यक्ति कार्य का ही प्राण है ध्रु
उच्चनीच भेद भूल एक हम सभी रहे
सहज बंधू भाव हो रागद्वेष ना रहे
सर्वदिक प्रकाश हो ज्ञानदीप बाल दो
चरण शीघ्र ढृढ़ बढे ध्येय शिखर हम चढ़े १
मुस्कुराते खिल उठे मुकुल पात पात में
लहर लहर सम उठे हर प्रघात घात में
स्तुति निंदा रागलोभ यश विरक्ति चाह से
कर्म शेत्र में बढे सहज स्नेह भाव से २
दीनहीन सेवा ही परमेष्टि अर्चना
केवल उपदेश नहीं कर्मरूप साधना
मनवाचा कर्मसे सदैव एकरूप हो
शिवसुंदर नवसमाज विश्ववन्द्य हम गढे ३
ध्येय महासागर में सरित रूप हम मिले
लोकयोगक्षेम ही राष्ट्र अभय गान है
सेवारत व्यक्ति व्यक्ति कार्य का ही प्राण है ध्रु
उच्चनीच भेद भूल एक हम सभी रहे
सहज बंधू भाव हो रागद्वेष ना रहे
सर्वदिक प्रकाश हो ज्ञानदीप बाल दो
चरण शीघ्र ढृढ़ बढे ध्येय शिखर हम चढ़े १
मुस्कुराते खिल उठे मुकुल पात पात में
लहर लहर सम उठे हर प्रघात घात में
स्तुति निंदा रागलोभ यश विरक्ति चाह से
कर्म शेत्र में बढे सहज स्नेह भाव से २
दीनहीन सेवा ही परमेष्टि अर्चना
केवल उपदेश नहीं कर्मरूप साधना
मनवाचा कर्मसे सदैव एकरूप हो
शिवसुंदर नवसमाज विश्ववन्द्य हम गढे ३