Friday 13 January 2012

सेवा है यज्ञ कुंड समिधा सम हम जले (Sewa Hai Yagya Kund...)

सेवा है यज्ञ कुंड समिधा सम हम जले
ध्येय महासागर में सरित रूप हम मिले
लोकयोगक्षेम ही राष्ट्र अभय गान है
सेवारत व्यक्ति व्यक्ति कार्य का ही प्राण है         ध्रु

उच्चनीच भेद भूल एक हम सभी रहे
सहज बंधू भाव हो रागद्वेष ना रहे
सर्वदिक प्रकाश हो ज्ञानदीप बाल दो
चरण शीघ्र ढृढ़ बढे ध्येय शिखर हम चढ़े           १

मुस्कुराते खिल उठे मुकुल पात पात में
लहर लहर सम उठे हर प्रघात घात में
स्तुति निंदा रागलोभ यश विरक्ति चाह से
कर्म शेत्र में बढे सहज स्नेह भाव से                 २

दीनहीन सेवा ही परमेष्टि अर्चना
केवल उपदेश नहीं कर्मरूप साधना
मनवाचा कर्मसे सदैव एकरूप हो
शिवसुंदर नवसमाज विश्ववन्द्य हम गढे       ३   

युग युग से हिंदुत्व सुधा की, बरस रही मंगलमय धार (yug yug se hindutva sudha ki)

युग युग से हिंदुत्व सुधा की, बरस रही मंगलमय धार
भारत की हो जय-जयकार भारत की हो जय-जयकार

भारत ने ही सारे जग को ज्ञान और विज्ञान दिया
अनुपम स्नेह भरी दृष्टि से जन-जन का उपकार किया
जननी की पावन पूजा का सुखमय रूप हुआ साकार                     १

भारत अपने भव्य रूप  को धरती पर फिर प्रकटाए
नष्ट करे सारे दोषों को समरसता नित सरसाए
पुण्य धरा के अमर पुत्र हम पहिचाने निज शक्ति अपार               २

भारत भक्ति ह्रदय में भरकर अनथक तप दिन रत करे 
शाखा रूपी नित्य साधना सुन्दर सुगठित रूप वरे 
निर्भय होकर बढे निरंतर ढृढ़ता से जीवनव्रत धार                    ३