Saturday, 5 November 2011

रुके रुके से कदम, रुक के बार बार चले

रुके रुके से कदम, रुक के बार बार चले
करार लेके तेरे, दर से बेकरार चले

सुबह ना आयी, कई बार नींद से जागे
थी एक रात की ये जिन्दगी, गुजार चले

उठाए फिरते थे एहसान दिल का सीने पर
ले तेरे कदमों में ये कर्जा भी उतार चले

1 comment: