Saturday 12 November 2011

मेरे दीवानेपन की भी दवा नहीं

मेरे दीवानेपन की भी दवा नहीं
मेरे दीवानेपन की भी दवा नहीं
मैंने जाने क्या सुन लिया तुम ने तो कुछ कहा नहीं

मैं ये समझा मेरे दिल की कोई हसरत निकल गयी
तूने देखा मुझे ऐसे के तबियत मचल गयी
वरना तेरे सर की क़सम आदमी मैं बुरा नहीं

बे-अदब हूँ मैं दीवाना किस कदर तू खफा हुयी
छू लिया क्यूँ बदन तेरा तौबा कैसी खता हुयी
सारी दुनिया में कोई मेरे लायक सज़ा नहीं

चांदनी रात में जैसे रूफ-इ-गुल पे किरण पड़ी
बे-सबब रूठ कर तेरे माथे पे यूं शिकन पड़ी
मेरे महबूब ये तेरी बेरुखी है अदा नहीं

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