Monday 31 October 2011

रात और दिन दिया जले, मेरे मन में फिर भी अंधियारा है raat aaur din diyaa jale, mere man mein fir bhee andhiyaaraa hai

रात और दिन दिया जले, मेरे मन में फिर भी अंधियारा है
जाने कहा है, ओ साथी, तू जो मिले जीवन उजियारा है

पग पग मन मेरा ठोकर खाए, चाँद सूरज भी राह ना दिखाए
एसा उजाला कोइ मन में समाये, जिस से पीया का दर्शन मिल जाए

गहरा ये भेद कोइ मुझ को बताये, किसने किया हैं मुझपर अन्याय
जिस का हो दीप वो सुख नहीं पाए, ज्योत दिए की दूजे घर को सजाये

खुद नहीं जानू ढूंढें किस को नजर, कौन दिशा हैं मेरे मन की डगर
कितना अजब ये दिल का सफ़र, नदियाँ में आये जाए जैसे लहर

3 comments: