Saturday 29 October 2011

दिल ढूँढता है, फिर वही फुरसत के रात दिन (Dil Dhundhta Hai Phir Wahi, Fursat Ke Raat Din)

दिल ढूँढता है, फिर वही फुरसत के रात दिन
बैठे रहे तसव्वुर-ये-जाना किये हुए

जाड़ों की नर्म धुप और आँगन में लेट कर
आँखों पे खिंच कर तेरे दामन के साए को
औंधे पड़े रहे कभी करवट लिए हुए

या गरमीयों की रात जो पूरवाईयां चले
ठंडी सफ़ेद चादरों पे जागे देर तक
तारों को देखते रहे छत पर पड़े हुए

बर्फीली सर्दियों में किसी भी पहाड़ पर
वादी में गूंजती हुयी, खामोशियाँ सूने
आँखों में भीगे भीगे से लम्हे लिए हुए

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