Saturday 29 October 2011

एक अकेला इस शहर में (Ek Akela Is Shahar Me..)

एक अकेला इस शहर में रात में और दोपहर में आबोदाना ढूँढता है आशियाना ढूँढता है

दिन खाली खाली बर्तन है और रात है जैसे अँधा कुआँ
इन सूनी अँधेरी आँखों से आंसूं की जगह आता हैं धुआं
जीने की वजह तो कोई नहीं मरने का बहाना ढूँढता है 
एक अकेला इस शहर में ...

इन उम्र से लम्बी सड़कों को मंजिल पे पोहोंचते  देखा नहीं 
बस  दौड़ती फिरती रहती हैं हमने  तो ठहेरते देखा नहीं 
इस अजनबी से शहर में जाना पहेचाना ढूँढता  है 
एक अकेला इस शहर में ...

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