Monday 31 October 2011

कोइ ये कैसे बताये के वो तनहा क्यों है (Koi Ye Kaise Bataye Ke Wo Tanha Kyo Hai?)

कोइ ये कैसे बताये के वो तनहा क्यों है
वो जो अपना था, वही और किसी का क्यों है
यही दुनिया हैं तो फिर, एसी ये दुनिया क्यों है
यही होता हैं तो, आखिर यही होता क्यों है?

इक ज़रा हाथ बढ़ा दे तो, पकड़ ले दामन
उस के सीने में समा जाए, हमारी धड़कन
इतनी कुर्बत हैं तो फिर फासला इतना क्यों है?

दिला-ये-बरबाद से निकला नहीं अबतक कोइ
इक लुटे घर पे दिया करता हैं दस्तक कोइ
आस जो टूट गयी हैं फिर से बंधाता क्यों है?

तुम मसर्रत का कहो या इसे गम का रिश्ता
कहते है प्यार का रिश्ता हैं जनम का रिश्ता
है जनम का जो ये रिश्ता तो बदलता क्यों है ?

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