Tuesday 20 December 2011

ये दुनिया, ये महफ़िल मेरे काम की नहीं (Ye Duniya Ye Mahafil...)

ये दुनिया, ये महफ़िल मेरे काम की नहीं

किस को सुनाऊ हाल दिल-ये-बेकरार का
बुज़ता हुआ चराग हूँ अपने मजार का
ए काश भूल जाऊ, मगर भूलता नहीं
किस धूम से उठा था, जनाजा बहार का

अपना पता मिले, ना खबर यार की मिले
दुश्मन को भी ना एसी सजा प्यार की मिले
उनको खुदा मिले हैं खुदा की जिन्हें तलाश
मुज़ को बस एक ज़लक मेरे दिलदार की मिले

सहारा में आके भी, मुज़ को ठिकाना ना मिला
गम को भूलाने का, कोइ बहाना ना मिला
दिल तरसे जिस में प्यार को, क्या समजू उस संसार को
एक जीती बाजी हार के, मैं ढूँढू बिछड़े यार को

दूर निगाहों से आंसू बहाता हैं कोइ
कैसे ना जाऊ मै, मुज़ को बुलाता हैं कोइ
या टूटे दिल को जोड़ दो, या सारे बंधन तोड़ दो
ए परबत रास्ता दे मुजे, ए काँटों दामन छोड़ दो

1 comment: